मेरे पैरों में सामर्थ्य नहीं,
जो द्वार तेरे पहुँच पाऊं।
मेरी वाणी में शक्ति नहीं,
जो गीत तेरे मैं गाऊं।।
ये हाथ भी बहुत छोटे हैं,
कैसे तेरी ओर बढ़ाऊं।
नहीं वो नेत्र मेरे पास,
जिनसे दर्शन कर पाऊं।।
केवट के पास तो तुम्हीं,
चलकर नाव माँगने गये थे।
शबरी की कुटिया में जाकर,
जूठे बेर प्रेम से खाये थे।।
सुग्रीव की तरफ तुम्हीं ने,
दोस्ती का हाथ बढ़ाया था ।
पाषाणी अहिल्या का उद्धार,
तुमने ही जाकर किया था।।
गज को ग्राह के फंद से छुड़ाने,
नंगे पाँव चलकर सिधाये थे।
द्रुपद सुता की लाज बचाने,
द्वारिका से दौड़कर आये थे।।
मैं तुम तक पहुंच नहीं सकता,
तुम ही मुझसे मिलने आओ।
मोह माया के बंधन से मुझे,
प्यारे तुम ही आकर छुड़ाओ।।
प्यारेलाल साहू
मरौद छ.ग.