चुप नहीं हूँ बस मैं थोड़ा गुमसुम हूँ।
में अपने लौटाने का इंतजार कर रहा हूँ।
जहाँ तक पहुँच गया हूँ किसीका पीछा
करतें करतें वहीं से वापिस आ रहा हूँ।
अच्छा खासा तबीयत के साथ गया था
पीछे वहीं से पाग़ल होते हुए आ रहा हूँ।
एक शाम को निकला था मैं लगता
है जैसे बहोत सालों बाद आ रहा हूँ।
अपनी पुरानी पहचान लेकर मिलो का
सफ़र तय करके ख़ाली हाथ आ रहा हूँ।
जहा से उन्हों ने चलना शुरू किया था
उस जमीन को चूमते हुए आ रहा हूँ।
जहाँ तक कदमों ने साथ दिया वही से
अपनी ज़िंदगी को हारे हुए आ रहा हूँ।
अपने साथ दिन में उनकी यादें रातों
को सुकूँन की नींद लिए आ रहा हूँ।
नीक राजपूत