दुःखद है वेदना, गरीबी अमीरी का अंतर,
देश की बढ़ताी निरक्षरता करती निराश।
सोचे,देशभक्त,भारती का हर शीर्ष सेवक,
उच्च शिक्षित को मिले उन्नति का शतांश।
लक्ष किशोर,युवा को क्यों न मिले अल्पांश ।
त्याग दें हम गर्व अनपढ़ भीड़ पर इसी क्षण,
हों समर्पित, दें भरत मनु संसाधन को ज्ञान।
जग में,सबसे अधिक है,अनपढ़ जनसंख्या,
जहां,क्या यही विश्वगुरु पद की व्याख्या ?
बना शिक्षा अधिकार एक मौलिक अधिकार,
विधि से दूर यथार्थ, तो कैसे हों जन कृतार्थ।
विषमता बड़ी पुरुष,स्त्री शिक्षा विकास-दर में,
पुरुष शिक्षा समर्थित,स्त्री शिक्षण है अधर में।
विकास-दर हो रही मंद,शिक्षा नहीं है व्यापक,
प्रति स्तर की शिक्षा हो सर्वसुलभ,जन-प्रेरक।
रोटी,घर,काम से ऊपर, शिक्षा समावेशी हो,
हर शिक्षित हो शिक्षाधर्मी,संवेदना निवेशी हो।
शिक्षा गुणवत्ता हेतु,शिक्षक हों समर्पित सेवक,
तन,धन,आत्मबल की उमंग में बनें,वे नायक।
सर्वाधिकार सुरक्षित
@मीरा भारती,
पटना,बिहार