घर की वो राजदुलारी है,
अमृत सी सबको प्यारी है।
बेटी तो एक फूल वारी है,
इसकी तो बात निराली है।
दुःख में वो मुस्कराई है,
जिसके कोमलता के आगे,
गम भी अब हारी।
ये तो सबसे न्यारी है,
न समझो इसे बोझ ये तो,
हर फर्ज बखुबी निभाती है।
बेटी तो अब अंतरिक्ष में जाती है,
कांटों से फूलों को चुनाती है।
देश का नाम रोशन करती है,
हर तूफान को हंसकर साहती है।
जल ,थल में भी ये नाम कमाती है,
बिन बेटी के ये संसार अधूरा।।
कुमारी गुड़िया गौतम ( जलगांव) महाराष्ट्र