बचपन को बचाने की मुहिम तेज़: चमकी बुखार को मात देने जुटा बिहार, भागलपुर से शुरू हुई नई उम्मीद

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जब सवाल नन्हे जीवन का हो, तो कोई भी तैयारी छोटी नहीं होती। बिहार सरकार ने एक बार फिर दिखा दिया कि वह बच्चों की हिफाज़त के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। चमकी बुखार (एईएस) जैसी जानलेवा बीमारी पर समय रहते नकेल कसने के लिए राज्य के अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य श्री प्रत्यय अमृत की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण ऑनलाइन बैठक आयोजित की गई।

इस बैठक में बिहार के उन जिलों के जिलाधिकारी, सिविल सर्जन और स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी जुड़े जहां यह बीमारी अतीत में कहर बरपा चुकी है। भागलपुर से इस बैठक में जिलाधिकारी डॉ. नवल किशोर चौधरी, सिविल सर्जन डॉ. अशोक प्रसाद और JLNMCH के अधीक्षक भी समीक्षा भवन से सक्रिय रूप से शामिल हुए।

भागलपुर में राहत की खबर, लेकिन तैयारी पूरे जोश में
बैठक में यह स्पष्ट किया गया कि भागलपुर जिले में अभी तक एक भी चमकी बुखार का मामला सामने नहीं आया है। यह राहत की बात ज़रूर है, लेकिन इससे प्रशासन की सतर्कता में कोई कमी नहीं आई। “एहतियात बरतना इलाज से बेहतर है,” इसी सोच के साथ अब तैयारी को युद्ध स्तर पर आगे बढ़ाया जा रहा है।

मीठे खाने से हो सकती है ज़िंदगी की मिठास बरकरार
विशेषज्ञों का कहना है कि 0 से 6 वर्ष तक के बच्चों में यह बीमारी ग्लूकोज की अचानक कमी के कारण होती है, खासकर अप्रैल से जून के महीनों में। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ने माता-पिता को सलाह दी है कि बच्चों को हर रात हलवा, खीर या अन्य मीठा व्यंजन खिलाकर सुलाएं। यह साधारण-सी दिखने वाली सावधानी बड़ी बीमारी से रक्षा का कवच बन सकती है।

लक्षणों को पहचानिए, लापरवाही से बचिए
अगर बच्चा अचानक सुस्त हो जाए, बेहोश होने लगे या शरीर में झटके आएं, तो इसे नजरअंदाज़ न करें। तुरंत नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाएं। समय रहते की गई एक छोटी-सी पहल बच्चे की जान बचा सकती है।

इमरजेंसी में अब रेफर नहीं, तुरंत उपचार का आदेश
बैठक के अंतिम चरण में जिलाधिकारी ने JLNMCH के अधीक्षक और सिविल सर्जन को एक बेहद मानवीय और प्रभावशाली निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि 10 साल से कम उम्र के बच्चों को इमरजेंसी में आने पर तुरंत उपचार दिया जाए, न कि उन्हें रेफर कर दिया जाए।

“रेफर करने के दौरान ही अक्सर वह कीमती वक़्त निकल जाता है, जिसमें हम एक जान बचा सकते थे। अब यह नहीं होगा। प्राथमिक उपचार वहीं होगा जहां बच्चा पहुंचा है,”
डॉ. नवल किशोर चौधरी, जिलाधिकारी, भागलपुर

गांवों के ‘झोलाछाप’ नहीं, बनेंगे ‘जीवनरक्षक’
एक और बड़ी पहल यह रही कि जिलाधिकारी ने ग्रामीण क्षेत्रों के अनौपचारिक चिकित्सकों (क्वेक) को प्रशिक्षण देने की बात भी कही। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में इन्होंने अहम भूमिका निभाई थी, और अब इन्हें अनौपचारिक रूप से प्रशिक्षित कर स्वास्थ्य सेवा की श्रृंखला में जोड़ा जा सकता है।

निष्कर्ष:
भागलपुर सहित पूरा बिहार इस बार चमकी बुखार को लेकर सतर्क है, सजग है और संगठित भी। सरकार, प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और समाज – सब एकजुट होकर यह संदेश दे रहे हैं कि “बचपन की एक भी मुस्कान फीकी नहीं पड़ने देंगे।”


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