बिहार के गया जिले में दलितों ने 12 वर्ष के मासूम सवर्ण बच्चों को SC-ST एक्ट में फंसाया

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एससी – एसटी (SC-ST) की वकालत करने वाले लोग कहते हैं कि इस एक्ट को दलित और आदिवासी समुदाय के लोगों के अधिकारों का हनन ना हो इसलिए लाया गया था, दलित नेता ये दलील देते हैं कि दलितों पर जातीय अत्याचार ना हो इसलिए इस कानून को लाया गया था लेना इस कानून के फायदे से ज्यादा इसके दुरुपयोग होते हैं। बिहार के गया जिले के टेकारी थानाक्षेत्र के अंतर्गत गहरपुर गाँव में 12 वर्षीय बच्चों के खिलाफ दलित वर्ग के लोगों ने SC-ST एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवाया है, एफआईआर में ये दावा किया है कि सवर्ण समाज से आने वाले कुछ बच्चों ने जिनकी उम्र 12 से 15 वर्ष के लगभग है, उन्होंने एक दलित परिवार के घर में मारपीट, लूटपाट एवं तोड़फोड़ किया है।

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शिकायत करने वाले दलित परिवार ने दलील दिया है कि सवर्ण बच्चों के एक समूह ने उनके घर पर धावा बोलकर उनके परिजनों के साथ मारपीट किया फिर लाखों के गहने लूट लिए और उनके घरो में तोड़फोड़ किया है। जिन बच्चों पर SC-ST एक्ट के तहत मुकदमा किया है उनमें एक बच्चे का नाम रोहित है जिसकी उम्र महज वर्ष है, वर्ष 2018 से उसके हाथ में चोट लग जाने के कारण उसका एक हाथ काम भी नहीं करता है, उस बच्चे पर महंगे जेवर चुराने का और मारपीट का आरोप लगाना बेहद ही हास्यास्पद लगता है। दूसरे बच्चे का नाम रितेश है जो अभी छठी क्लास में पढ़ाई करता है, तीसरे बच्चे का नाम अमन है जो हाल में ही दसवीं की परीक्षा दिया है। इन मासूम बच्चों के खिलाफ दलित वर्ग के लोगों ने एस-सी -एस टी के तहत मुकदमा दर्ज करवाया है। इन बच्चों के माता – पिता अपने बच्चों के खिलाफ मुकदमे दर्ज होने के बाद बेहद परेशान और कहते हैं कि साजिशन इन मासूम बच्चों को फंसाया जा रहा है। खेल और पढ़ाई के उम्र में इन बच्चों को अब पुलिस का भय सता रहा है, ये बच्चे बतलाते हैं कि इनपर मुकदमे करने वाले लोगों से उनकी बहस हो गयी थी, बच्चों का कहना है कि शिकायत करने वाले लोग नशे की हालत में थे और जेल में भी रह चुके हैं, ये खुद पेशेवर अपराधी हैं और जानबूझकर उनके परिवार को परेशान करने के लिए ये सकिशन मुकदमा दर्ज किया है। जिस एक्ट के खिलाफ देश के सर्वोच्च न्यायालय भी सवाल उठा चुका है उस एक्ट को सवर्णों के खिलाफ जुल्म करने के लिए खुलेआम एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, और अब इसका शिकार बच्चे भी होने लगे हैं।

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