मन किसी अज्ञात पीड़ा
में चेतना
शून्य हो गया था
मन का अंधकार रात्रि
के उस गहन
अंधकार में छटपटा रहा था
उस सूर्योदय की
प्रतीक्षा में
अपार पीड़ा की गहन
वेदना उस
सागर से भी गहरी
प्रतीत हो रही थी
मेरा अबोध मन तुम्हे ही
खोज रहा था
हर जगह
तुमसे अपनी वेदना व्यक्त करके
जैसे में अपनी पीड़ा ही
विस्मृत कर देती थी
आज असहनीय है अपनी
वेदना को छुपा लेना
नही कह सकी तुमसे
बहुत खोजा किन्तु न पा
सकी अपने सम्मुख तुम्हे
मेरे अस्त मन के सूर्योदय
की प्रतीक्षा में मेरे
बोझल नयन अपलक
तुम्हारी प्रतिकृति को
निहार रहे है,
कब होगा मेरा सूर्य उदय
प्रतिमा
दिल्ली