दस साल पहले 1 करोड़ 80 लाख रुपए की लागत से जनता की सेहत सुधारने के लिए बना ये स्वास्थ्य केंद्र अब खुद बीमार हो गया है। दीवारों में दरारें इतनी चौड़ी हैं कि जैसे ईमानदारी बीच से फटकर बाहर झांक रही हो। डॉक्टर इलाज करें या इमारत की हालत देखकर खुद सदमे में चले जाएं — ये तय करना मुश्किल है।

2014 में माननीय विधायक कुमार शैलेन्द्र ने इस भवन का शिलान्यास किया था, लेकिन लगता है नींव में ईंट और सीमेंट से ज्यादा भ्रष्टाचार की मोटी परतें जोड़ी गई थीं। स्वास्थ्य भवन तो बना, मगर ठेकेदारों और अफसरों की सेहत ज़रूर सुधर गई!

जनता को इलाज चाहिए था, इमारत को इलाज की ज़रूरत पड़ गई। सच तो ये है कि दीवारों की दरारें नहीं, ये भ्रष्टाचार की खरोंचें हैं — जो अब मुंह चिढ़ा रही हैं। सवाल सीधा है: ज़िम्मेदार कौन ?
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वो ठेकेदार जिसने पैसों का इंजेक्शन लगाकर निर्माण को बेहोश कर दिया?
वो अधिकारी जिसने आंखें बंद कर फाइलों पर हां की मोहर लगा दी?
या वो सिस्टम, जो हर बार विकास के नाम पर भ्रष्टाचार की ईंट जोड़ देता है?
बिहपुर के इस भवन की हालत देखकर यही लगता है — भवन की दीवारें की दरार, पर भ्रष्टाचार का किला अब भी मजबूत खड़ा है!
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