चलो गांव की ओर

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गांव छूट गया, हरयर खेत छूट गये
गोला बगीचा छूटा, बहियार छूट गया।।

अन्हरिया में भी टीसन रोजे जाते थे
पढ़ते थे सभे जला, सीसी बला दिया।।

दीवान ना था, ना गदगद ब्रांडेड गद्दे
सोए कोठा पे, तो कभी बिछा खटिया।।

सब्भे साथे चोराते थे, आम, तूत, केले
आज हम फ्रेंड, तब कहते थे संगतिया।।

बेपारी-लूडो, नुक़्क़ा-चोरी, खूब खेले
हरदम साथे रहते, लड़-झगड़ देते गरिया।।

हर शौक पूरा अब, डिजिटल खेल खेले
चकमते शहरों ने छीना, गांवों का गोतिया।।

यह रचना अनिमेष जी के द्वारा लिखा गया है।।

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